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ए॒तावा॑नस्य महि॒मातो॒ ज्यायाँ॑श्च॒ पूरु॑षः। पादो॑ऽस्य॒ विश्वा॑ भू॒तानि॑ त्रि॒पाद॑स्या॒मृतं॑ दि॒वि ॥३ ॥

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पद पाठ

ए॒तावा॑न्। अ॒स्य॒। म॒हि॒मा। अतः॑। ज्याया॑न्। च॒। पूरु॑षः। पुरु॑ष॒ऽइति॒ पुरु॑षः ॥ पादः॑। अ॒स्य॒। विश्वा॑। भू॒ता॑नि॑। त्रि॒पादिति॑। त्रि॒ऽपात्। अ॒स्य॒। अ॒मृत॑म्। दि॒वि ॥३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:31» मन्त्र:3


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (अस्य) इस जगदीश्वर का (एतावान्) यह दृश्य-अदृश्य ब्रह्माण्ड (महिमा) महत्त्वसूचक है (अतः) इस ब्रह्माण्ड से यह (पूरुषः) परिपूर्ण परमात्मा (ज्यायान्) अति प्रशंसित और बड़ा है (च) और (अस्य) इस ईश्वर के (विश्वा) सब (भूतानि) पृथिव्यादि चराचर जगत् एक (पादः) अंश है और (अस्य) इस जगत्स्रष्टा का (त्रिपाद्) तीन अंश (अमृतम्) नाशरहित महिमा (दिवि) द्योतनात्मक अपने स्वरूप में है ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - यह सब सूर्य्य-चन्द्रादि लोकलोकान्तर चराचर जितना जगत् है, वह सब चित्र-विचित्र रचना के अनुमान से परमेश्वर के महत्त्व को सिद्ध कर उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय रूप से तीनों काल में घटने-बढ़ने से भी परमेश्वर के चतुर्थांश में ही रहता, किन्तु इस ईश्वर के चौथे अंश की भी अवधि को नहीं पाता और इस ईश्वर के सामर्थ्य के तीन अंश अपने अविनाशि मोक्षस्वरूप में सदैव रहते हैं। इस कथन से उस ईश्वर का अनन्तपन नहीं बिगड़ता, किन्तु जगत् की अपेक्षा उसका महत्व और जगत् का न्यूनत्व जाना जाता है ॥३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(एतावान्) दृश्यादृश्यं ब्रह्माण्डरूपम् (अस्य) जगदीश्वरस्य (महिमा) माहात्म्यम् (अतः) अस्मात् (ज्यायान्) अतिशयेन प्रशस्तो महान् (च) (पूरुषः) परिपूर्णः (पादः) एकोंऽशः (अस्य) (विश्वा) विश्वानि सर्वाणि (भूतानि) पृथिव्यादीनि (त्रिपात्) त्रयः पादा यस्मिन् (अस्य) जगत्स्रष्टुः (अमृतम्) नाशरहितम् (दिवि) द्योतनात्मके स्वस्वरूपे ॥३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! अस्य परमेश्वरस्यैतावान् महिमाऽतोऽयं पूरुषो ज्यायानस्य च विश्वा भूतान्येकः पादोऽस्य त्रिपादमृतं दिवि वर्त्तते ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - इदं सर्वं सूर्यचन्द्रादिलोकलोकान्तरं चराचरं यावज्जगदस्ति तच्चित्रविचित्ररचनानुमानेनेश्वरस्य महत्त्वं सम्पाद्योत्पत्तिस्थितिप्रलयरूपेण कालत्रये ह्रासवृद्ध्यादिनाऽपि परमेश्वरस्य चतुर्थांशे तिष्ठति नैवास्य तुरीयांशस्याप्यवधिं प्राप्नोति। अस्य सामर्थ्यस्यांशत्रयं स्वेऽविनाशिनि मोक्षस्वरूपे सदैव वर्त्तते नानेन कथनेन तस्याऽनन्तत्वं विहन्यते, किन्तु जगदपेक्षया तस्य महत्त्वं जगतो न्यूनत्वञ्च ज्ञाप्यते ॥३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सूर्य, चंद्र, सर्व लोक लोकांतर, चराचर जग पाहून परमेश्वराचे महत्व स्पष्ट होते, तसेच उत्पत्ती, स्थ्तिी, प्रलय होऊनही तो परमेश्वर एक चतुर्थांश स्वरूपातच प्रकट झालेला असतो. त्याचे तीन चतुर्थांश सामर्थ्य अविनाशी, अव्यक्त मोक्षाच्या स्वरूपात (द्योतन स्वरूपात) असते. त्यामुळे त्याची महिमा (अनंतत्व) कमी होत नाही. उलट या सृष्टीपेक्षाही तो माठा असून, जग त्याच्यापेक्षा लहान आहे हे सिद्ध होते.